निरंकारी मिशन 1 🙏 ads
धन निरंकार जी
सतयुग से कलयुग तक
निरंकारी दृष्टिकोण से सतयुग से लेकर आज तक की कहानी आत्मा और परमात्मा के संबंध और मानवता के आध्यात्मिक उत्थान की यात्रा है। निरंकारी मिशन मानता है कि सृष्टि के हर युग में ईश्वर ने मानवता को ज्ञान और प्रेम के माध्यम से सत्य से जोड़ने का प्रयास किया। यह कहानी आत्मा के ईश्वर से मिलने और इस ज्ञान को हर युग में जागृत रखने की प्रक्रिया का वर्णन करती है। ads
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1.सतयुग (सत्य और ज्ञान का युग)
सतयुग को ईश्वर और आत्मा के बीच सीधा संबंध का युग माना गया।
इस युग में हर व्यक्ति आत्मज्ञान से जुड़ा हुआ था।
लोग अहंकार और द्वेष से मुक्त थे।
सतयुग में संत-महात्माओं ने मानवता को सिखाया कि ईश्वर निरंकार (बिना रूप के) है और हर जगह विद्यमान है।
आत्मा और परमात्मा के मिलन में कोई रुकावट नहीं थी।
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2.त्रेतायुग (धर्म और सत्य का आंशिक क्षय)
त्रेतायुग में मानवता का ईश्वर से संबंध कमजोर होना शुरू हुआ।
अहंकार, क्रोध, और अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों ने लोगों को सत्य से दूर करना शुरू कर दिया।
इस युग में भी संतों और महात्माओं ने लोगों को निरंकार के सत्य स्वरूप का बोध कराने का प्रयास किया।
लोगों को ज्ञान और भक्ति के माध्यम से ईश्वर के करीब आने की प्रेरणा दी गई।
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3. ads द्वापरयुग (सत्य का और ह्रास)
द्वापरयुग में धार्मिक रीतियां और कर्मकांड अधिक बढ़ गए।
निरंकारी दृष्टिकोण से इस युग में भी कुछ महापुरुषों ने प्रयास किया कि लोग निरंकार को समझें और आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके।
हालांकि, कर्मकांड और भौतिकता के प्रभाव से मानवता ईश्वर के सत्य स्वरूप से और दूर हो गई।
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4. कलयुग (अधर्म और अज्ञान का युग)
वर्तमान कलियुग में ईश्वर से जुड़ने की प्रक्रिया सबसे कठिन हो गई है।
निरंकारी मिशन का मानना है कि मानवता आज भौतिकता, अहंकार, और स्वार्थ में उलझी हुई है।
निरंकारी सत्संग और गुरुमत के माध्यम से सिखाया जाता है कि ईश्वर एक निराकार शक्ति है जिसे किसी मूर्ति, कर्मकांड, या भौतिक साधनों से नहीं पाया जा सकता।
इस युग में भी सतगुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है, जो आत्मज्ञान का प्रकाश फैलाता है।
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निरंकारी मिशन का उद्देश्य
निरंकारी मिशन सभी युगों के सार को आज के युग में भी जीवंत रखने का कार्य करता है।
मिशन का मानना है कि सभी युगों में ईश्वर ने संतों और महापुरुषों के माध्यम से मानवता को ज्ञान प्रदान किया।
आज भी सतगुरु के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया जारी है।
निरंकारी सत्संग में यह संदेश दिया जाता है कि ईश्वर से जुड़ने के लिए सत्यज्ञान (ब्रह्मज्ञान) प्राप्त करना आवश्यक है।
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समाप्ति का संदेश
निरंकारी विचारधारा मानती है कि हर युग में सत्य (सतगुरु) विद्यमान है और वह हमें निरंकार के स्वरूप को समझने और उसके साथ एकाकार होने की शिक्षा देता है।
आज के कलियुग में भी, आत्मज्ञान और प्रेम के माध्यम से निरंकार को अनुभव करना ही मानवता का अंतिम लक्ष्य है।
यदि आप इस कहानी के किसी खास पहलू पर विस्तार से जानना चाहें, तो कृपया बताएं।
समाप्ति का संदेश
निरंकारी विचारधारा मानती है कि हर युग में सत्य (सतगुरु) विद्यमान है और वह हमें निरंकार के स्वरूप को समझने और उसके साथ एकाकार होने की शिक्षा देता है।
आज के कलियुग में भी, आत्मज्ञान और प्रेम के माध्यम से निरंकार को अनुभव करना ही मानवता का अंतिम लक्ष्य है।
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